मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे,
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जहाँ कोई तागा टूट गया या ख़त्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गाँठ गिरह बुनतर कि
देख नही सकता कोई
मैंने तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे
गुलज़ार के इन अशारों को जिए जाते हैं...
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